"सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा पर समिति की सिफारिशें मंज़ूर कीं"

1. संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय ने खनन को सीमित करने के उद्देश्य से अरावली पर्वतों की परिभाषा पर संघ पर्यावरण मंत्रालय की समिति द्वारा दी गई सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है।

2. परिचय

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वीकार की गई सिफारिशें मुख्यतः निम्न तीन पहलुओं से संबंधित हैं—
अरावली पर्वतों और श्रृंखलाओं की एक समान परिभाषा।
मुख्य/अस्पृश्य क्षेत्रों में खनन पर प्रतिबंध।
अरावली क्षेत्र में सतत एवं नियंत्रित खनन सुनिश्चित करना तथा अवैध खनन पर रोक।

3. पृष्ठभूमि

अरावली पर्वतमाला दशकों से कानूनी और अवैध खनन, निर्माण तथा विकास गतिविधियों के दबाव में रही है।
पिछले वर्ष सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से अरावली की एक समान परिभाषा तैयार करने को कहा था।
FSI (2010) अरावली की परिभाषा के लिए 3-डिग्री ढलान का मानक उपयोग करता था।
2024 में गठित तकनीकी समिति ने इस मानक को संशोधित करते हुए—
न्यूनतम 4.57 डिग्री ढलान और
कम से कम 30 मीटर ऊँचाई वाली भू-आकृति को अरावली में शामिल माना।
इस मानक के अनुसार अरावली का लगभग 40% हिस्सा ही कवर होता था।

4. समिति द्वारा नई परिभाषा

समिति ने अरावली पर्वतों को परिभाषित करने के लिए एक नया मानदंड प्रस्तावित किया:
जो भी भू-आकृति स्थानीय सतह से 100 मीटर या उससे अधिक ऊँची हो, उसे उसकी ढलानों एवं आस-पास के क्षेत्र सहित अरावली पर्वत का हिस्सा माना जाए।
नई परिभाषा का प्रभाव
इस नए मानक के अनुसार अरावली का 90% हिस्सा अरावली के अंतर्गत नहीं आएगा।
यह क्षेत्र भविष्य में खनन एवं निर्माण गतिविधियों के लिए खुल सकता है।

5. संबंधित आंकड़े (FSI आकलन)

FSI के आंतरिक आकलन के अनुसार राजस्थान के 15 जिलों में मौजूद भू-आकृतियों में से—
केवल 1,048 भू-आकृतियाँ (8.7%) ही 100 मीटर से अधिक ऊँचाई वाली हैं।
वैज्ञानिक दृष्टि से 20 मीटर ऊँचाई भी वायु अवरोधक के रूप में महत्वपूर्ण मानी
जाती ह।

6. अरावली पर्वतमाला: एक परिचय

अरावली पर्वतमाला लगभग 692 किमी (430 मील) तक उत्तर-पूर्व दिशा में फैली है।
गुजरात, राजस्थान और हरियाणा से गुजरते हुए यह दिल्ली में समाप्त होती है।
यह भारत की सबसे प्राचीन पर्वतमाला मानी जाती है।
इसका लगभग दो-तिहाई हिस्सा राजस्थान में स्थित है।
यह क्षेत्र की पारिस्थितिकी, जलवायु संतुलन और जल विज्ञान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
मुख्य भूमिकाएँ
मरुस्थलीकरण के विरुद्ध प्राकृतिक सुरक्षा कवच।
जलवायु नियंत्रण में सहायक।
जैव विविधता का केंद्र—पर्णपाती वन, झाड़-झंखाड़, घास के मैदान सहित विभिन्न वनस्पतियाँ एवं जीव।
साबरमती, लूणी व बनास नदियों के जलग्रहण क्षेत्र के रूप में कार्यरत।

7. नई परिभाषा से उत्पन्न प्रमुख चिंताएँ

लगभग 90% अरावली क्षेत्र अरावली सूची से बाहर हो जाएगा।
इससे बड़े पैमाने पर खनन और निर्माण की संभावना बढ़ जाएगी।
NCR सहित आस-पास के क्षेत्रों की वायु गुणवत्ता पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
पर्यावरण मंत्रालय की 34 अरावली जिलों की सूची में ऐसे कई जिले शामिल नहीं किए गए जिनमें अरावली की स्पष्ट उपस्थिति है

8. आगे की राह

सर्वोच्च न्यायालय ने 100 मीटर ऊँचाई वाली परिभाषा को अस्थायी रूप से स्वीकार किया है।
साथ ही, कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय को निर्देश दिया है कि— भारतीय वन अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (ICFRE) की सहायता से
अरावली क्षेत्र के लिए सतत खनन और संरक्षण आधारित प्रबंधन योजना विकसित की जाए।

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