श्री गुरु नानक देव जी: सिख धर्म के संस्थापक

श्री गुरु नानक देव जी: सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी (1469–1539) सिख धर्म के संस्थापक और सिखों के प्रथम (आदि) गुरु हैं। उन्हें एक महान दार्शनिक, समाज सुधारक, कवि और विश्वबंधु के रूप में पूजा जाता है, जिन्होंने मानवता को एक ईश्वर (इक ओंकार) का संदेश दिया।

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2. आध्यात्मिक यात्रा और गुरुत्व
बचपन: बचपन से ही उनका मन गहन चिंतनशील और ईश्वर भक्ति की ओर झुका हुआ था। उन्होंने सांसारिक चीजों में कम रुचि दिखाई। वे गुरूजी, मौलवी और पंडितों से गूढ़ प्रश्न पूछते थे, जिससे सब चकित हो जाते| 7 वर्ष की आयु में उन्होंने स्कूलजाना शुरू किया और कम उम्र में ही धर्म, दर्शन और भाषाओँ में निपुण हो गए| सच्चा सौदा: एक प्रसिद्ध कहानी के अनुसार, उनके पिता ने उन्हें व्यापार के लिए कुछ धन दिया, लेकिन उन्होंने उस धन से भूखे संतों को भोजन करा दिया। इस घटना को 'सच्चा सौदा' के नाम से जाना जाता है, जो उनके परोपकारी स्वभाव को दर्शाता है।

ज्ञान प्राप्ति: 1496 ईस्वी के आसपास, लगभग 28 वर्ष की आयु में, उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ। इस घटना के बाद उन्होंने अपना प्रसिद्ध संदेश दिया: "ना कोई हिन्दू, ना कोई मुसलमान।" (अर्थात्, सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं)।

उदासी यात्राएँ: उन्होंने 30 वर्षों तक अपने चार साथियों (जिनमें से एक भाई मरदाना थे, जो रबाब बजाते थे) के साथ भारत, श्रीलंका, तिब्बत और अरब देशों तक की लंबी आध्यात्मिक यात्राएँ कीं। इन यात्राओं को 'उदासी' कहा जाता है, जिसका उद्देश्य लोगों को सत्य और धर्म का मार्ग दिखाना था।

3. गुरु नानक देव जी के मूल उपदेश गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ मुख्य रूप से मानवता, समानता, सेवा और एक ईश्वर की
उपासना पर आधारित हैं:

A. ईश्वर के संबंध में सिद्धांत (एक ओंकार) इक ओंकार सतनाम: यह सिख धर्म का मूल मंत्र है, जिसका अर्थ है "ईश्वर एक है, उसका नाम सत्य है।" निराकार: उन्होंने ईश्वर को निराकार, सर्वव्यापी और हर प्राणी के भीतर विद्यमान बताया। उन्होंने मूर्तिपूजा और बाहरी दिखावे पर आधारित धार्मिक परंपराओं को अस्वीकार किया।
B. तीन मूल स्तंभ (Three Cardinal Principles) उनके उपदेशों को तीन मुख्य सिद्धांतों में संक्षेपित किया गया है:
1. नाम जपना: ईश्वर के नाम का निरंतर स्मरण और जाप करना।
2. किरत करना: ईमानदारी और मेहनत से जीवन यापन करना।
3. वंड छकना: जो कुछ भी कमाया है, उसे जरूरतमंदों के साथ बाँटकर (साझा करके) खाना।
4. सत्य बोलो,सेवा करो: सच्चाई, करुणा, सेवा और प्रेम में विश्वास|
C. सामाजिक समानता उन्होंने जात-पात, ऊँच-नीच, और धार्मिक भेदभाव को सिरे से नकारा। लंगर: उन्होंने लंगर (सामुदायिक रसोई) की परंपरा शुरू की, जहाँ सभी जाति, धर्म और आर्थिक स्थिति के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। यह समानता और सेवा के सिद्धांत को दर्शाता है।

4. प्रमुख योगदान
सिख धर्म की नींव: उन्होंने गुरु शिष्य परंपरा के माध्यम से सिख धर्म की नींव रखी। गुरु ग्रंथ साहिब: उनके उपदेशों को गुरु ग्रंथ साहिब (सिखों का पवित्र ग्रंथ) में 'गुरबाणी' के रूप में संकलित किया गया है। करतारपुर साहिब: उन्होंने रावी नदी के तट पर करतारपुर (वर्तमान पाकिस्तान) नामक एक समुदाय की स्थापना की, जहाँ उन्होंने अपने जीवन के अंतिम वर्ष एक साधारण किसान के रूप में बिताए।

5. गुरु नानक देव जी की उदासी यात्राएँ गुरु नानक देव जी की उपदेश यात्राओं को 'उदासी' कहा जाता है। ये उनकी आध्यात्मिक खोज और मानवता को शिक्षा देने की व्यापक यात्राएँ थीं। गुरु नानक देव जी ने लगभग 25 से 30 वर्षों की अवधि में चार प्रमुख यात्राएँ कीं। इन यात्राओं में उनके एक प्रमुख साथी और शिष्य भाई मरदाना (जो रबाब बजाते थे) उनके साथ रहे।

1. प्रथम उदासी (पूर्व की यात्रा) क्षेत्र: यह उनकी सबसे लंबी यात्रा थी। स्थल: उन्होंने दिल्ली, हरिद्वार, अयोध्या, प्रयाग (इलाहाबाद), बनारस (काशी), गया, पटना, जगन्नाथ पुरी (ओडिशा), और असम तक की यात्रा की। उद्देश्य: हिन्दू धर्म के प्रमुख तीर्थस्थलों पर जाकर वहाँ के कर्मकांडों (जैसे हरिद्वार में सूर्य को जल देना) की व्यर्थता को उजागर करना और सच्ची भक्ति का संदेश देना।

2. द्वितीय उदासी (दक्षिण की यात्रा) क्षेत्र: दक्षिण भारत और श्रीलंका।
स्थल: वे मध्य भारत के कई क्षेत्रों से होते हुए आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु गए। इस यात्रा में वे श्रीलंका (तब सीलोन) तक पहुँचे। उद्देश्य: दक्षिण भारत में धार्मिक और सामाजिक समानता का प्रचार करना।

3. तृतीय उदासी (उत्तर की यात्रा) क्षेत्र: उत्तर भारत, कश्मीर, और हिमालय के दुर्गम क्षेत्र। स्थल: वे कश्मीर, हिमाचल और कैलाश पर्वत तथा तिब्बत के क्षेत्रों तक गए। उद्देश्य: योगियों, संन्यासियों और सिद्धों से भेंट करना और उन्हें बताना कि ईश्वर प्राप्ति के लिए केवल शारीरिक कष्ट (हठयोग) पर्याप्त नहीं है, बल्कि नाम जपना और सेवा आवश्यक है।
4. चतुर्थ उदासी (पश्चिम की यात्रा) क्षेत्र: पश्चिम एशिया और मध्य पूर्व। स्थल: यह यात्रा उन्हें इस्लामी धर्म के पवित्र स्थानों तक ले गई, जिनमें प्रमुख रूप से मक्का, मदीना (अरब) और बगदाद (इराक) शामिल हैं।
उद्देश्य: इस्लामिक और सूफी संतों से संवाद स्थापित करना, और यह संदेश देना कि ईश्वर न तो केवल पूर्व में है और न ही केवल पश्चिम में, बल्कि हर दिशा में सर्वव्यापी है।

इन यात्राओं का महत्व सर्वव्यापी संदेश: गुरु नानक देव जी ने इन यात्राओं के माध्यम से यह संदेश दिया कि ईश्वर एक है (इक ओंकार) और वह हर मनुष्य के भीतर निवास करता है। रूढ़ियों का खंडन: उन्होंने अंधविश्वासों, कर्मकांडों और जात-पात पर आधारित धार्मिक रूढ़ियों का खंडन किया।
समाज सुधार: उन्होंने विभिन्न धार्मिक और सामाजिक समूहों के बीच संवाद और समन्वय स्थापित करने का अभूतपूर्व प्रयास किया।

6. ग्रंथ और रचनाएँ गुरुनानक देव जी ने अपनी शिकाओं को बाणी (पवित्र वाणी) के रूप में प्रस्तुत किया| उनकी वाणियाँ गुरुमुखी लिपि में लिखी गई और बाद में इन्हें गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित किया गया| गुरु नानक जी धार्मिक, सामाजिक और नैतिक विषयों पर काव्यात्मक शैली में रचनाएँ कीं|
मुख्य ग्रंथ और रचनाएँ: गुरु नानक देव जी की रचनाएँ सिख धर्म के पवित्रतम ग्रंथ 'गुरु ग्रंथ साहिब' का एक बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। गुरु ग्रंथ साहिब में लगभग 974 शब्द (श्लोक) गुरु नानक देव जी द्वारा रचित हैं।
प्रमुख रचनाएँ (बानी)
गुरु नानक देव जी की कुछ सबसे प्रमुख और मौलिक रचनाएँ, जो सिख धर्म की नींव मानी जाती हैं:
जपुजी साहिब (Japji Sahib):
यह गुरु ग्रंथ साहिब की कुंजी और प्रारंभिक रचना है। यह ग्रंथ की शुरुआत में ही आता है। इसमें एक मूल मंत्र और 38 पौड़ियाँ (छंद) शामिल हैं, जो सिख धर्म के एकेश्वरवाद (इक ओंकार), ब्रह्मांड की प्रकृति, और मोक्ष के मार्ग का सार प्रस्तुत करता है। इसका नित्य पाठ सिख धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

आसा दी वार (Asa Di Var): यह 24 पौड़ियों और श्लोकों का संग्रह है, जिसे सुबह की प्रार्थना (कीर्तन) के रूप में गाया जाता है। इसमें नैतिक आचरण, समाज की बुराइयों का खंडन, और ईश्वर की महानता का वर्णन है।
सिद्ध गोष्ठी (Sidh Gosht):
यह नाथ योगियों के साथ गुरु नानक देव जी के संवाद पर आधारित है।
इसमें उन्होंने योगी जीवन शैली की कमियों को उजागर किया और बताया कि मोक्ष जंगल या पहाड़ों में तपस्या करने से नहीं, बल्कि गृहस्थ जीवन में ईमानदारी से काम करने और ईश्वर का नाम जपने से मिलता है।
बारह माह (Barah Maha):
यह पंजाबी कैलेंडर के बारह महीनों के माध्यम से आत्मा के विरह और मिलन
का वर्णन करता है। इसमें मानव और ईश्वर के बीच के प्रेम संबंध को दर्शाया गया है।

दखणी ओंकार (Dakhni Onkar):
यह 'ओंकार' (ब्रह्म) की प्रकृति का वर्णन करता है और आत्मा तथा परमात्मा के संबंध पर जोर देता है।

राग सोहिला (Raag Sohila):
यह रचना रत को सोने से पहले गई जाती है| इसमें जीवन की क्षणभंगुरता और ईश्वर की भक्ति का महत्व बताया गया है|




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