भारत में जनगणना 2011(census)

जनगणना किसी देश या देश के एक सुपरिभाषित हिस्से के सभी व्यक्तियों के एक विशिष्ट समय पर जनसांख्यिकीय, आर्थिक और सामाजिक डेटा एकत्र करने, उसके संकलन, विश्लेषण और प्रसारित करने की प्रक्रिया है।
यह जनसंख्या की विशेषताओं पर भी प्रकाश डालती है। भारतीय जनगणना दुनिया में किये जाने वाले सबसे बड़े प्रशासनिक अभ्यासों में से एक है।
नोडल मंत्रालय:
दशकीय जनगणना का संचालन महारजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त का कार्यालय,गृह मंत्रालय द्वारा किया जाता है। वर्ष 1951 तक प्रत्येक जनगणना के लिये तदर्थ आधार पर जनगणना संगठन की स्थापना की गई थी।

कानूनी/संवैधानिक प्रावधान:
जनगणना का कार्य जनगणना अधिनियम, 1948 के प्रावधानों के तहत किया जाता है। इस अधिनियम को बनाने हेतु विधेयक भारत के तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा पेश किया गया था। भारत के संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत जनगणना संघ का विषय है। यह संविधान की सातवीं अनुसूची के क्रमांक 69 में सूचीबद्ध है।
जनगणना का महत्त्व:
सूचना का स्रोत: भारतीय जनगणना भारत के लोगों की विशेषताओं के बारे में विभिन्न प्रकार की सांख्यिकीय जानकारी का सबसे बड़ा एकल स्रोत है। शोधकर्त्ता जनसंख्या के विकास और प्रवृत्तियों का विश्लेषण करने और अनुमान लगाने के लिये जनगणना के आँकड़ों का उपयोग करते हैं।
सुशासन: जनगणना के माध्यम से एकत्र किये गए डेटा का उपयोग प्रशासन, योजना और नीति निर्माण के साथ-साथ सरकार द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों के प्रबंधन और मूल्यांकन के लिये किया जाता है।
सीमांकन: जनगणना के आँकड़ों का उपयोग निर्वाचन क्षेत्रों के सीमांकन और संसद, राज्य विधानसभाओं तथा स्थानीय निकायों के प्रतिनिधित्व हेतु आवंटन के लिये भी किया जाता है। व्यवसायों की बेहतर पहुँच: व्यावसायिक घरानों और उद्योगों के लिये भी जनगणना के आँकड़े महत्त्वपूर्ण होते हैं, ताकि वे उन क्षेत्रों, जहाँ अब तक उनकी पहुँच नहीं थी, में अपने व्यवसाय को मज़बूती प्रदान करने हेतु योजना बना सकें।
अनुदान देना: वित्त आयोग जनगणना के माध्यम से उपलब्ध जनसंख्या के आँकड़ों के आधार पर राज्यों को अनुदान प्रदान करता है।

पहली जनगणना (वर्ष 1881):
इसने ब्रिटिश भारत के पूरे महाद्वीप (कश्मीर, फ्रेंच तथा पुर्तगाली उपनिवेशों को छोड़कर) की जनसांख्यिकीय, आर्थिक और सामाजिक विशेषताओं के वर्गीकरण पर विशेष बल दिया।

दूसरी जनगणना (वर्ष 1891):
यह लगभग वर्ष 1881 की जनगणना के समान पैटर्न पर ही आयोजित की गई थी। इसमें 100% कवरेज के प्रयास किये गए और वर्तमान बर्मा के ऊपरी हिस्से, कश्मीर और सिक्किम को भी शामिल किया गया।

तीसरी जनगणना (वर्ष 1901):
इस जनगणना में बलूचिस्तान, राजपूताना, अंडमान निकोबार, बर्मा, पंजाब और कश्मीर के सुदूर इलाकों को शामिल किया गया था।
पाँचवीं जनगणना (वर्ष 1921):
1911-21 का दशक अब तक का एकमात्र ऐसा दशक रहा है, जिसमें जनसंख्या में 0.31% की दशकीय गिरावट देखी गई।
यह वह दशक था जब वर्ष 1918 में फ्लू महामारी का प्रकोप फैला हुआ था, जिसमें कम-से-कम 12 मिलियन लोगों की जान गई थी।
भारत की जनसंख्या वर्ष 1921 की जनगणना तक लगातार बढ़ रही थी और वर्ष 1921 की जनगणना के बाद भी यह वृद्धि जारी है।
इसलिये वर्ष 1921 के जनगणना वर्ष को भारत के जनसांख्यिकीय इतिहास में "द ग्रेट डिवाइड" या महान विभाजक वर्ष कहा जाता है।
ग्यारहवीं जनगणना (वर्ष 1971):
स्वतंत्रता के बाद यह दूसरी जनगणना थी।
इसने वर्तमान में विवाहित महिलाओं की प्रजनन क्षमता के बारे में जानकारी के लिये एक प्रश्न जोड़ा।

तेरहवीं जनगणना (वर्ष 1991):
यह स्वतंत्र भारत की पाँचवीं जनगणना थी।
इस जनगणना में साक्षरता की अवधारणा को बदल दिया गया और 7+ आयु वर्ग के बच्चों को साक्षर माना गया (वर्ष 1981 की तुलना में जब 4+ आयु वर्ग के बच्चों को साक्षर माना जाता था)।

चौदहवीं जनगणना (2001):
इसमें प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर एक बड़ी छलांग लगाई गई।
चरणों के शेड्यूल को हाई स्पीड स्कैनर के माध्यम से स्कैन किया गया था और शेड्यूल के हस्तलिखित डेटा को इंटेलिजेंट कैरेक्टर रीडिंग (ICR) के माध्यम से डिजिटल रूप में परिवर्तित किया गया था।
एक ICR छवि फाइलों से हस्तलेखन को कैप्चर करती है। यह ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉग्निशन (OCR) तकनीक का एक उन्नत संस्करण है जिसमें मुद्रित वर्ण कैप्चर किये जाते हैं।

पंद्रहवीं जनगणना (वर्ष 2011):
वर्ष 2011 की जनगणना में EAG राज्यों (अधिकार प्राप्त कार्रवाई समूह/Empowered Action Group): उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और ओडिशा) के मामले में पहली बार महत्त्वपूर्ण गिरावट देखी गई थी।

भारत में जनगणना
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