प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा


सारांश
हमारी प्राचीन ज्ञान परंपरा ने व्यक्ति के सर्वांगीण विकास पर ध्यान केन्द्रित किया है तथा शिक्षा का स्वरूप व्यक्तित्व के विकास हेतु आवश्यक माना गया है। प्राचीन शिक्षा के लिए गुरुकुल ही पूर्णतः आदर्श स्थान— संयम, महत्त्वपूर्ण, प्रज्ञा व व्यवहारिक ज्ञान, नीति, धर्म, शास्त्र, गद्य, काव्य, नाटक, व्याकरण आदि परम्परागत सामग्री पढ़ाई जाती थी। संस्कृत भाषा में ही उपलब्ध होकर इसकी शिक्षण व्यवस्था चलती थी। भारतीय समाज, संस्कृति व कला के क्षेत्र में इनका गहरा प्रभाव दिखाई देता है। परंपरागत ज्ञान से ही संस्कारवान समाज का निर्माण होता है। संस्कारों से शारीरिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक पात्रता के साथ पर्यावरण भी स्वच्छ होता है।
बदलते सामाजिक परिवेश और बदलते मूल्य के बीच हमारी शिक्षा व्यवस्था को सकारात्मक बदलाव आवश्यक है। आधुनिक युग में स्वस्थ्य भारतीय नागरिक तैयार करने हेतु विविध प्रकार की शिक्षा पद्धति अपनानी पड़ती है, क्योंकि एक पहलू से हम अनुशासन के को और यदि देखें तो शारीरिक शिक्षा से हमें प्रोत्साहन मिलता है। यदि भारतीय परंपरागत शिक्षण पद्धति का पुनर्जीवन हो जाता है, तो नवीन शिक्षा व्यवस्था के लिए नई दिशा मिल सकती है। यह हमें सबके लिए अच्छा प्रयास प्रतीत होती है। इसी वस्तुस्थिति को ध्यान में रखते हुए इस शोध पत्र का निर्माण किया गया।

मानव जीवन की मुख्य उपलब्धि वे हैं जो संस्कृति और संस्कार से प्राप्त किए जाते हैं। जो समाज ज्ञान प्रवाह के लिए जागरूक रहा है। वे आज विश्व में भारत का दिशादर्शन करते हुए हम सभी को गौरवान्वित कर इसका संवर्धन किया जाए। यदि भारत ही के जनजाति को हमारी युग परंपरा का ज्ञान प्राप्त हो जाए, तभी इसकी उपयोगिता सिद्ध होगी।

मुख्य शब्द— ज्ञान परंपरा, संस्कृति, सांस्कृतिक मूल्य।
प्रस्तावना
प्राचीन काल से भारतीय ज्ञान परंपराएँ और सांस्कृतिक बनावट को प्रतिष्ठित करती रही हैं। पुराणों में ज्ञान को असामान्य माना गया है। भारत में वेदशास्त्र, नीतिशतास्त्र, विकर्षणों, तत्वज्ञान, उपनिषदों, आगम आदि ग्रंथ प्राचीन शिक्षा परंपरा का गठन करते हैं। विशेष रूप से वेद साहित्य के सिद्धांतों में ज्ञान की व्यवस्था को निर्मित किया गया है। वैज्ञानिक एवं ज्ञान विज्ञान का गौरव मंडित प्रभाव समाज पर प्रकाश डाल रहा था। भारतीय शिक्षा के माध्यम से जीवन विज्ञान की सही व्याख्या तथा संस्कारात्मक प्रकृति में विशेष रूप से शिक्षार्थियों ने समाज हेतु टिकाऊ जीवन की आवश्यकता को प्रदर्शित किया है।

आज व्यावहारिक शिक्षा में आधुनिक परिवेश से दिखाया देने हेतु विद्यार्थियों में बौद्धिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और मानवीय मूल्यों के विकास के लिए ज्ञान विज्ञान का प्रचलन आवश्यक है। ज्ञान की आवश्यकता से शिक्षित वर्ग स्वयं विविध परिस्थितियों का सामना करने का सामर्थ्य रखता है। भारतीय शिक्षा विज्ञान के माध्यम से आधुनिक तकनीकों का प्राचीन भारतीय ज्ञान क्षेत्र से जोड़ने का लगातार प्रयास किया जा रहा है।

लोक एवं उद्देश्य प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा को आधुनिक परिवेश संबंधी में उपयोगिता सिद्ध करना।
विविध पारंपरिक प्रक्रियाओं में प्राचीन भारतीय परंपरा की शिक्षापद्धति को प्रतिबिंबित करना।
परिकल्पना
प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपराएँ शिक्षण को प्रोत्साहित होंगी।

प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा का विविधता प्रक्रियाओं को परिवर्तित करेगा।

प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा की गौरव गाथा एवं परंपरा

भारतीय ज्ञान परंपरा अति प्राचीन एवं पवित्र है, जिसमें सभी प्रकार विज्ञान, लौकिक और पारलौकिक, कला, धर्म और ज्ञान का समाज में महत्व है। हमारे देश में यह माना है कि शिक्षण प्रणाली जीवन के प्रत्येक पहलू—कर्म, भक्ति, ज्ञान मार्ग—से प्रभावित होती है। वेद, उपनिषद्, आगम, पुराण, रामायण और महाभारत जैसे विभिन्न ग्रंथों के श्लोकों के माध्यम से आध्यात्मिकता को जीवन में उतारने संबंधी ज्ञान प्राप्त किया जाता था।

गुरुकुल पद्धति के अंतर्गत शिक्षक अपने शिष्यों को विभिन्न विषयों का ज्ञान प्रदान करते थे। शिक्षक और शिष्य का संबंध आज भी आदर्श माना जाता है। प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली में शारीरिक शिक्षा का विशेष महत्व था, क्योंकि व्यक्ति के शारीरिक विकास तथा विभिन्न कलाओं के माध्यम से व्यक्तित्व का निर्माण किया जाता था। शिक्षा के अंतर्गत नैतिकता एवं अनुशासन का भी महत्वपूर्ण स्थान था। विद्यार्थीगण जंगलों में पवित्र वातावरण में तप, अध्ययन एवं सेवा करते थे। मंदिर, धार्मिक स्थानों पर भी अध्ययन की प्रक्रिया चलती थी।

वैज्ञानिक एवं तार्किक चिंतन का परिप्रेक्ष्य

भारतीय परंपरा न केवल आध्यात्मिक वरन् वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समृद्ध रही है। शिक्षा का मुख्य उद्देश्य मानव जीवन को सामरिक स्तर तक समर्थ बनाना था। भारतीय ज्ञान विज्ञान का प्रभाव जीवन और समाज के सभी पहलुओं पर पड़ता है। मानव शरीर से लेकर ब्रह्मांड तक की संरचना का वैज्ञानिक अध्ययन प्राचीन ग्रंथों में उल्लेखित है। उपनिषद् में ज्ञान को अनिवार्य माना गया है। वैदिक ज्ञान के वैज्ञानिक स्वरूप से प्रकृति एवं जीवन के तत्वों की विस्तृत व्याख्या की गई। मुंडक उपनिषद् (मुनक 13.12) अर्थात् पूर्ण ज्ञान में ‘एक समय पर पूर्ण ब्रह्म’ की अवधारणा दी गई है। वेदों में ज्ञान के महत्व को स्पष्ट किया गया है जिसमें मन की शांति, पवित्रता एवं तत्वों की समझ के लिए अध्ययन अनिवार्य माना गया है।

भारतीय ज्ञान परंपरा में दार्शनिक एवं आध्यात्मिक तत्त्व
भारतीय परंपरा में दार्शनिकता एवं आध्यात्मिकता का भी महत्वपूर्ण स्थान रहा है। प्राचीन विद्वानों ने जीवन के सत्य एवं अध्यात्म को आधार बनाकर शिक्षा का स्वरूप निर्धारित किया। उपनिषद्, वेदांत, सांख्य, योग, मीमांसा, न्याय तथा वैशेषिक दर्शन के सिद्धांतों में मानव मन एवं आत्मा के रहस्य को समझने का मार्ग बताया गया है।

“साक्षात्कार परंपरा ने हमें यथार्थ मार्गदर्शन देता रहा है”, “सत्यमेव जयते” ब्रह्म वाक्य 10.191.2 इन शिक्षाओं के माध्यम से व्यक्ति अपनी आत्मिक शक्ति जाग्रत कर जीवन का श्रेष्ठतम रूप प्राप्त कर सकता है। प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली विशेष रूप से मानव कल्याण एवं उच्च आदर्शों पर आधारित रही है। आज जीवन के विविध क्षेत्रों में प्राचीन दार्शनिक परंपराएँ प्रासंगिक हैं।

भारतीय ज्ञान परंपरा एवं सामाजिक और संस्कृतिगत संदर्भ

भारतीय ज्ञान परंपरा समाज के जीवन में मूल्यों की स्थापना करती है। समय परिवर्तित हो रहा है परंतु भारतीय संस्कृति एवं परंपरा आज भी हमारी सभ्यता की मूल आधारशिला है। भारतीय संस्कृति और शिक्षापद्धति मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देती है। भारतीय ज्ञान परंपरा का मुख्य उद्देश्य ही—समाज में नैतिक, सांस्कृतिक और सभ्यतागत शिक्षाओं का विकास करना है।
प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा की विशेषताएँ
भारतवर्ष की यह विविध और गौरवशाली परंपरा विभिन्न वैज्ञानिक प्रक्रियाओं को देश देती है। भारत की सांस्कृतिक विविधता पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान बनाए हुए है। यह कहना गलत न होगा कि आज फिर—पश्चिमी संस्कृति मानव जीवन पर हावी हो चुकी है। परंतु भारतवर्ष की प्राचीन परंपरा आज भी अपने प्रभाव में है। दुनिया जिस आधार पर भारतवर्ष को देखकर उसका अध्ययन करती है, वह आधार हमारी प्राचीन ज्ञान परंपरा है। यह अलग बात है—विज्ञानवाद परंपरा के आलोचकों ने देश में यह धारणा बना दी कि भारत की परंपरा वैज्ञानिक नहीं है। लेकिन यह कथन सत्य पर आधारित नहीं है। भारतवर्ष की प्राचीन परंपरा में वैज्ञानिकता एवं मानवता का अद्भुत संगम है। भारतीय संस्कृति में अनेक ग्रंथ, जैसे वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, योगशास्त्र, आयुर्वेद, ज्योतिष, नृत्यशास्त्र आदि ग्रंथों में ज्ञान परंपरा का विस्तृत वर्णन किया गया है।

इन सभी ग्रंथों की उपयोगिता आज भी अपने स्थान पर है। इस परंपरा की सोच व्यक्ति को कर्म के प्रति चेतना, जिम्मेदारी एवं कर्तव्यपरायणता के लिए प्रेरित करती है। धार्मिक और आध्यात्मिक ग्रंथों के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन की दिशा को निर्धारित करने के लिए प्रेरित होता है। भारत की प्राचीन परंपरा का मूल तत्व आध्यात्मिकता, मानवीय गुण तथा आत्मा की पवित्रता को ठीक रूप से स्पष्ट करती है और यही भारतीयता का आधार माना जाता है।

यह ज्ञान परंपरा अत्यधिक उपयोगी रही है

इसने मनुष्य के जीवन में दिशा, समय और कर्म सभी तत्वों का निर्धारण करने के लिए व्यक्तित्व का विकास किया। सही और गलत का भान करना सिखाया है। निश्चित रूप से प्राचीन ज्ञान परंपरा मनुष्य को उत्कृष्ट बनाने में सहायक सिद्ध हुई है।

आधुनिक संदर्भ में भारतीय ज्ञान परंपरा की प्रासंगिकता

आज भारत पूरे विश्व में उभर रही शक्ति का केंद्र बन चुका है। सम्पूर्ण दुनिया भारतीय ज्ञान परंपरा एवं भारतीय चिंतन पर आश्रित होती जा रही है। आधुनिक युग में प्रौद्योगिकी विस्तार के साथ—साथ जीवन के अन्य तत्वों में भी प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा का प्रभाव देखा जा सकता है।

वैश्विक स्तर पर भारत की पहचान दिन प्रतिदिन अधिक मजबूत होती जा रही है। आधुनिक वैज्ञानिक खोजों में भी भारतीय गणित, चिकित्सा, विज्ञान एवं आध्यात्मिक सिद्धांतों का उपयोग देखा जा सकता है। कहा जाता है कि भारतीय गणित ने शून्य की खोज कर विश्व सभ्यता को अमूल्य योगदान दिया। भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इसी प्रकार योग और ध्यान आज विश्व में मानसिक स्वास्थ्य एवं जीवन शैली सुधारने हेतु प्रमुख उपाय बन चुके हैं।

आज भी भारतीय संस्कृति एवं ज्ञान-विज्ञान पर शोध किए जा रहे हैं। भारत के ज्ञान का प्रभाव पूरे विश्व को ऊर्जा देता है। विज्ञान के अनेक क्षेत्रों में भारतीय ज्ञान परंपरा का उपयोग बढ़ रहा है। यह कहना गलत न होगा कि आधुनिक समय में भारतीय शिक्षा, साहित्य, संस्कृति, विज्ञान और समाज का वैश्विक स्तर पर उत्थान भारतीय ज्ञान परंपरा से ही संभव हो रहा है।

यह बात भी स्पष्ट है कि विज्ञान, गणित, समाजशास्त्र व इतिहास संबंधित विषयों को भारतवर्ष अत्यधिक मानता है

इन विषयों ने मानव जीवन की गुणवत्ताओं तथा जीवन के उद्देश्य को समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारतीय संस्कृति का मूल तत्व ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ आज पूरे विश्व का मार्गदर्शन कर रहा है। भारत की प्राचीन परंपरा केवल भारतीयों के लिए नहीं, बल्कि पूरे विश्व के मानव समाज के लिए प्रेरणा स्रोत है। भारतीय ग्रंथों में वर्णित संदेश सार्वभौमिक हैं और आज भी मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने में उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं।

इन ग्रंथों से विश्व समुदाय को यह समझ आता है कि आत्मा और जीवन शैली का परिवर्तित होना ही मानव जीवन का वास्तविक लक्ष्य है। भारत की पारंपरिक प्रणाली—ज्ञान, विज्ञान, संस्कृति, साहित्य तथा नैतिकता—विश्व को नई दृष्टि दे रहे हैं।

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